अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल न होकर कांग्रेस ने वही गलती की है, जो सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद ठुकरा कर की थी. कांग्रेस ने 2009 में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त न करके एक और गलती की. खैर, दोनों बातों पर बहस हो सकती है, लेकिन अब राम मंदिर में हिस्सा न लेकर कांग्रेस ऐसी गलती कर रही है जिसका उसे आने कई सालों तक पछतावा रहेगा.

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में शामिल नहीं हुए, जो उनके समय के लिए बहुत बुद्धिमानी की बात थी. सत्तर साल में देश की राजनीति बहुत बदल गई है. कांग्रेस को समय के साथ बदलना सीखना होगा. 2014 के चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद एके एंटनी कमेटी ने माना था कि पार्टी को अपनी मुस्लिम समर्थक छवि छोड़नी होगी.

राम मंदिर कार्यक्रम में भाग लेकर कांग्रेस के पास हिंदू आस्था के समर्थक के रूप में अपनी पुरानी छवि को पुनर्जीवित करने का अवसर है. जब पूरा विपक्ष राम मंदिर समारोह में भाग नहीं ले रहा था, तब कांग्रेस भाजपा को चुनौती देने के लिए 22 जनवरी को अयोध्या पहुंच सकती थी.


यही कारण था कि नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद के सोमनाथ मंदिर जाने पर आपत्ति जताई थी. आज कई लोग राम मंदिर के उद्घाटन में शामिल नहीं होने के कांग्रेस पार्टी के फैसले को 11 मई, 1951 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की सोमनाथ मंदिर की यात्रा पर नेहरू की आपत्ति से जोड़ते हैं. इस फैसले के बारे में कई लोगों की यही राय है.

लोग कांग्रेस नेताओं की जय-जयकार कर रहे हैं. लेकिन नेहरू ने उस समय के राजनीतिक माहौल को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया. नेहरू का यह निर्णय कांग्रेस के लिए काफी हद तक फलदायक रहा. अगले तीन आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी भारी बहुमत के साथ देश की सरकार बनाने में सफल रही.

नेहरू जानते थे कि कांग्रेस पार्टी उस समय देश में हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करती थी. कांग्रेस के सामने जनसंघ कहीं नहीं टिकता. नेहरू को कांग्रेस पार्टी के भीतर ऐसे लोगों को तैयार करना था जो वामपंथी विचारों से प्रभावित हों. देश में कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट पार्टियां बहुत मजबूत स्थिति में थीं.

कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट पार्टियां मंदिरों में दलितों की पहुंच के लिए लगातार संघर्ष करती रहती हैं.

पार्टी में वामपंथी विचारों का बहुमत भी है और लोग अस्पृश्यता विरोधी आंदोलन, जमींदारी प्रथा के उन्मूलन, जाति व्यवस्था के उन्मूलन, पूंजीवाद आदि पर वामपंथी टिप्पणियों को भी पसंद करते हैं. इसलिए राजेंद्र प्रसाद की सोमनाथ मंदिर यात्रा पर नेहरू की आपत्ति एक लोकप्रिय निर्णय था. आगामी चुनावों में नेहरू ने इसका भरपूर लाभ उठाया. लेकिन तब से अब तक गंगा में काफी पानी बह चुका है.

देश की राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी है. कांग्रेस पार्टी का मुकाबला सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से है. कम्युनिस्ट पार्टी पूरी तरह से नष्ट हो गई है. वामपंथी विचारों को लोकप्रिय बनाने का सारा काम आज पूरा हो गया है. आज देश के लोगों की प्राथमिकताएं बदल गई हैं. इसलिए कांग्रेस को भी बदलना चाहिए.


हिंदुत्व समर्थक कांग्रेस पार्टी में एक सेक्टर क्यों देखना चाहते हैं? इसके बाद कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह अयोध्या में राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में हिस्सा नहीं लेगी. पार्टी के भीतर बहस छिड़ गई और विरोध के स्वर उभरने लगे.

गुजरात में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष अंबरीश डेर, विधायक अर्जुन मोढवाडिया, यूपी कांग्रेस के आचार्य प्रमोद कृष्णा और अन्य नेताओं ने पार्टी के फैसले के खिलाफ आवाज उठाई है.

हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि वह 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होंगे. उन्होंने निमंत्रण के लिए आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद को भी धन्यवाद दिया

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