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Kumar Saurav
2024 के लोकसभा चुनाव के अखाड़े में एक दूसरे को चित करने के लिए पक्ष और विपक्ष रणनीति बना रहा है.

हिंदुत्व के रथ पर सवार भाजपा के सारथि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार भी रणनीतिक कौशल दिखाते हुए एक-एक चाल रहे हैं. वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए के उम्मीदवारों के खिलाफ INDI गठबंधन एक सीट-एक उम्मीदवार के फार्मूले पर काम कर रहा है.

मुख्य रणनीति यही है कि भाजपा विरोधी वोटों को बंटने ना दिया जाये. हालांकि अभी तक सीट शेयरिंग और कन्वेनर जैसे मुद्दों पर उनके बीच समहमित नहीं बन पायी है. वे धीरे-धीरे इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.

जहां विपक्ष एकजुटता की बात कर रहा है उसी बीच बसपा की प्रमुख मायावती ने यह ऐलान कर दिया है कि वह किसी से गठबंधन नहीं करेंगी. न तो किसी का समर्थन करेंगी. उन्होंने कहा कि बसपा इस चुनावी समर में अकेले उतरेगी.

मायावती ने कहा है कि चुनाव के बाद वह गठबंधन के बारे में बारे में सोचेंगी, लेकिन उन्होंने कहा है कि वह फ्री में किसी को भी समर्थन नहीं देंगी. मायावती की इस घोषणा के बाद यह तो साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश में लड़ाई अब त्रिकोणीय होगी.

यानी कहीं भी NDA और INDI उम्मीदवारों के बीच सीधी लड़ाई नहीं होगी. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती के चुनावी समर में अकेले लड़ने से सपा-कांग्रेस गठजोड़ को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

बसपा के पास 19 फीसदी वोट बैंक है. यदि उन्होंने स्थानीय स्तर पर मुस्लिम और यादव वोटों का कुछ और जुगाड़ कर लिया तो इस का सीधा नुकसान सपा-कांग्रेस गठबंधन को हो सकता है. मायावती के अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में भाजपा के वोट प्रतिशत में भी गिरावट हो सकती है, लेकिन यह गिरावट उतनी नहीं होगी जितनी सपा-कांग्रेस गठबंधन को होगी.

यूपी में दलित वोटरों की संख्या 21 फीसदी है. इसमें जाटव सबसे अधिक हैं और ये मायावती के हार्डकोर समर्थक रहे हैं. 2014 के चुनाव में बसपा को 19.8 फीसदी वोट मिले थे. हालांकि उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. भाजपा को उस साल 42.6 फीसदी वोट के साथ 71 सीटें जीती थी.

सपा 22.3 फीसदी वोट लाकर 5 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. वोट शेयर के मामले में बसपा अब भी यूपी में दूसरी बड़ी पार्टी है.

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