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    Home » टिकट वितरण : क्या है बीजेपी की रणनीति?
    Delhi

    टिकट वितरण : क्या है बीजेपी की रणनीति?

    The Pulse of PoliticsBy The Pulse of PoliticsMarch 4, 2024Updated:March 4, 2024No Comments122 Views
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    चुनाव की घोषणा होने से पहले टिकट घोषित कर बीजेपी ने सबको चौंकाया. आमतौर पर रूलिंग पार्टी इतना पहले टिकट घोषित नहीं करतीं. इससे विक्षुब्धों के दूसरे दल में जाने और वहां से उम्मीदवार बन जाने के चांस रहते हैं. क्या बीजेपी को लगता है कि अपने 400 पार के टारगेट को हासिल कर रही है और इस आत्मविश्वास में उसने इतना पहले टिकट घोषित कर दिया. 

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    बीजेपी जिस शाम (3 मार्च)  आगामी लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की घोषणा करनेवाली थी, उसी दोपहर पार्टी के दो सांसदों, पूर्वी दिल्ली से गौतम गंभीर और झारखंड की हजारीबाग सीट से जयंत सिन्हा ने खुद को राजनीतिक जिम्मेदारी से मुक्त करने की प्रार्थना पार्टी से की थी. शाम में जब टिकटों की घोषणा हुई तो पार्टी ने हजारीबाग से मनीष जायसवाल का नाम घोषित किया था. पूर्वी दिल्ली का टिकट अभी होल्ड है. दिल्ली की चांदनी चौक सीट से वर्तमान सांसद डॉ. हर्षवर्धन का टिकट काट कर व्यापारी नेता प्रवीण खंडेलवाल को पार्टी ने टिकट दिया. अगले दिन हर्षवर्धन ने सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी और कहा कि कृष्णा नगर(दिल्ली) का क्लीनिक उनका इंतजार कर रहा है. इसके साथ ही पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से भोजपुरी गायक पवन सिंह को बीजेपी ने उतारा, पवन सिंह ने अगले दिन चुनाव लड़ने में असमर्थता जता दी. वैसे, चुनाव की घोषणा होने से पहले टिकट घोषित कर बीजेपी ने सबको चौंकाया. आमतौर पर रूलिंग पार्टी इतना पहले टिकट घोषित नहीं करतीं. इससे विक्षुब्धों के दूसरे दल में जाने और वहां से उम्मीदवार बन जाने के चांस रहते हैं. क्या बीजेपी को लगता है कि अपने 400 पार के टारगेट को हासिल कर रही है और इस आत्मविश्वास में उसने इतना पहले टिकट घोषित कर दिया. 

    इसे भी पढ़ें- मोदी की रैली और कांग्रेस के कैप्टन का इस्तीफा

    जो टिकट कटे, वे आश्चर्यजनक नहीं थे. नई दिल्ली सीट से सांसद मीनाक्षी लेखी का टिकट कटना हैरान करने वाला नहीं था. चर्चा है कि उनका टिकट तो 2019 के आम चुनाव में ही कट जाता लेकिन चुनाव के तुरंत पहले राहुल गांधी के बयान को लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सवाल खड़ा किया, उससे उनका  टिकट बच गया था, लेकिन क्षेत्र में सक्रियता में कमी ने उन्हें दावेदारों की कतार से निकाल दिया. नई दिल्ली संसदीय सीट पर बड़ी संख्या में सरकारी बाबू रहते हैं, इसलिए हर पार्टी वहां से तेजतर्रार कैंडिडेट देना चाहती है. बीजेपी ने जिन बांसुरी स्वराज को उम्मीदवार बनाया है, वह बीजेपी की कद्दावर नेता रहीं सुषमा स्वराज की बेटी हैं. सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं और पार्टी ने पिछले साल ही उन्हें दिल्ली लीगल सेल का सह संयोजक बनाया था. 

    इसे भी पढे़ं – क्या वाराणसी में पीएम मोदी से मुकाबले के लिए राहुल ने बनायी है खास रणनीति?

    उत्तर-पूर्व दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी को लेकर लगातार यह चर्चा रही कि उनका टिकट कट सकता है. कुछ साल पहले जब उन्हें दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया तो इस चर्चा को और बल मिला. लेकिन पार्टी की पहली ही लिस्ट में उनका टिकट मिलना यह दर्शाता है कि पार्टी को पूर्वांचल का और कोई दमदार नेता नहीं मिला है. मनोज तिवारी भले यमुनापार की सीट से सांसद हैं, लेकिन इसका संदेश पूरी दिल्ली में जायेगा. पूर्वांचल पर फोकस करना पार्टी के लिए इसलिए भी जरूरी था कि क्योंकि वेस्ट दिल्ली से आम आदमी पार्टी ने महाबल मिश्र को मैदान में उतारा है. महाबल बिहार के हैं और यहां से वह पार्षद, विधायक और सांसद बने. वह कांग्रेस में भी रहे हैं और दो साल से आम आदमी पार्टी में हैं. चुनाव में इन दोनों दलों का गठबंधन है. दोनों दलों को उम्मीद है कि महाबल को दोनों दलों के कार्यकर्ताओं का सहयोग मिलेगा. ऐसे में पूर्वांचल को इग्नोर करने का रिस्क बीजेपी नहीं ले सकती थी. दक्षिणी दिल्ली सीट से रमेश बिधूड़ी का टिकट कटने में उनके उस विवादित बयान को वजह माना जा रहा है जो उन्होंने लोकसभा में बसपा के दानिश अली को निशाना बनाते हुए दिया था.  लोकसभा अध्यक्ष ने ऐसा व्यवहार दोबारा करने पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी थी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को खेद जताना पड़ा था. वेस्ट दिल्ली से सांसद रहे प्रवेश वर्मा को लेकर चर्चा है कि उनके व्यवहार के कारण टिकट से वंचित होना पड़ रहा है. हालांकि सूत्र यह भी बता रहे हैं कि रमेश बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा से कहा जा सकता है कि दिल्ली विधानसभा में पार्टी को कैसे सत्ता में लाया जाये, इसकी तैयारी में लगें.

    एनसीआर की एक महत्वपूर्ण सीट नोएडा से डॉ. महेश शर्मा को टिकट मिलना भी चर्चा में रहा. डॉ. शर्मा पहली बार 2014 में सांसद बने थे और उन्हें केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया था. 2019 में वह दूसरी बार सांसद बने, लेकिन उन्हें केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं किया गया. इसके बाद से यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि पार्टी कहीं अगली बार उन्हें ड्रॉप न कर दे. 2017 में जब यूपी में विधानसभा चुनाव हुआ तो उस समय नोएडा की राजनीति में बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह की एंट्री हुई. पंकज नोएडा सीट से विधायक बने और इस चर्चा ने जोर पकड़ा कि नोएडा की राजनीति पर महेश शर्मा की पकड़ कमजोर हो सकती है. पंकज सिंह के रूप में नया पावर सेंटर बनेगा, लेकिन महेश शर्मा के टिकट ने फिलहाल इन अटकलों पर विराम लगा दिया है.

    इस टिकट वितरण में हरियाणा की किसी सीट और यूपी की गाजियाबाद सीट से कैंडिडेट घोषित नहीं होना, इस घटनाक्रम ने सबको चौंकाया. दरअसल, हरियाणा में बीजेपी वहां की स्थानीय पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ सरकार चला रही है. वहां सीटों का बंटवारा होना है. 3 मार्च को ही बीजेपी ने हरियाणा के सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव कार्यालय खोला. सीएम मनोहरलाल ने वर्चुअली इसका उद्घाटन किया और अपने संबोधन में कहा कि बीजेपी हरियाणा में लोकसभा की सभी 10 सीटें जीतेगी. सवाल यह है कि क्या पार्टी वहां जेजेपी के लिए कोई सीट नहीं छोड़ने वाली है. क्या जेजेपी इस पर तैयार है? कुल मिला कर यह बड़ा पेच है और इस वजह से वहां टिकट होल्ड कर दिये गये हैं. प्रदेश में कांग्रेस का संगठन नहीं है, लेकिन वह विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल है. बीजेपी के निशाने पर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही है, लिहाजा प्रदेश में टिकट तय करने में वह कांग्रेस की रणनीति को भी ध्यान में रखेगी. गाजियाबाद के स्थानीय सांसद जनरल (रिटायर्ड) वीके सिंह ने जिस तरह यूक्रेन और उत्तराकाशी में सुरंग में मजदूरों को निकालने के अभियान का नेतृत्व किया, उसके बाद उनका टिकट फंसेगा, यह कोई नहीं सोच रहा था. चूंकि अभी तक वहां से टिकट किसी को मिला नहीं है, लेकिन कहा जा रहा है कि कई ताकतवर नेताओं की गाजियाबाद सीट से दावेदारी की वजह से कैंडिडेट का नाम क्लियर नहीं किया गया है.

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