Ranchi : आंदोलन की आंच से तप कर निकला झारखंड मुक्ति मोरचा इन दिनों चक्रव्यूह में फंसा हुआ है. झारखंड के मौजूदा हालात में भले ही झामुमो ने अपनी सरकार बचा ली हो और आंदोलन से निकले गुरुजी के विश्वस्त चंपाई सोरेन के हाथों में कमान थमा दी हो, पर अंदरूनी हालात ठीक नहीं हैं.
झामुमो के अध्यक्ष दिशोम गुरु शिबू सोरेन अपनी उम्र के आगे बेबस हैं और उनके बेटे हेमंत सोरेन भ्रष्टाचार के आरोप में ईडी की कस्टडी में हैं. उनके सबसे छोटे बेटे बसंत सोरेन विधायक हैं और मंत्री बनने की चाह रखते हैं. परिवार की एक बहू सीता सोरेन जो गुरुजी के सबसे बड़े बेटे दुर्गा सोरेन की विधवा हैं, अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के रथ पर आसीन हैं.
उनकी इच्छा अपनी बेटियों को सेटल करने की है. हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन अभी विधायक नहीं हैं, पर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी की आशंकाओं के बीच जिस तरह से उन्हें प्रोजेक्ट किया जा रहा था, उससे यह साफ नजर आ रहा है कि आनेवाले समय में वह भी झामुमो की एक महत्वपूर्ण सदस्य होंगी.
टूट का खतरा
झामुमो में टूट नयी बात नहीं है. पार्टी में पहले भी टूट हुई है और अलग गुट बने हैं. फिलहाल पार्टी ऐसे नाजुक मोड़ पर खड़ी है जहां सरकार की कमान परिवार के हाथों में नहीं है. भले ही चंपाई सोरेन शिबू सोरेन के सबसे विश्वत सिपाहसालारों में से एक हैं, पर हैं तो वह परिवार के बाहर के.
भारतीय जनता पार्टी देश में क्षेत्रीय पार्टियों या परिवारवादी पार्टियों का अस्तित्व जिस प्रकार से खत्म करने में लगी हुई उसका अगला निशाना झामुमो ही है. या तो मिल जाओ या खत्म हो जाओ, भाजपा इसी फार्मूले पर काम करती दिख रही है. चाहे महाराष्ट्र का मामला हो या फिर उत्तर प्रदेश.
क्षेत्रीय पार्टियां खत्म हो रही हैं या भाजपा में मिल रही हैं. झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पार्टी ने 2019 के विधानसभा चुनावों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 26 सीटों पर जीत हासिल की थी. चंपाई सोरेन के सामने अभी मंत्रिमंडल विस्तार की चुनौती है.
चुनौती इसलिए कि इसमें पार्टी और सरकार का संतुलन साधना होगा. सबसे बड़ी चुनौती परिवार के दो सदस्यों को लेकर है. एक हैं विधायक सीता सोरेन औऱ दूसरे हैं गुरुजी के छोटे बेटे बसंत सोरेन. बसंत सोरेन हर कीमत पर मंत्रिमंडल में जगह पाना चाहते हैं और वह भी डिप्टी सीएम बन कर. यदि बसंत को डिप्टी सीएम बनाया गया और सीता सोरेन को मंत्री नहीं बनाया गया तो इसका असर परिवार समेत पार्टी पर भी पड़ेगा.
बसंत सोरेन को डिप्टी सीएम बना देने का अर्थ यह होगा कि सरकार फिर से सीधे परिवार के पास चली जायेगी, चंपाई सोरेन मात्र रबर स्टांप की तरह सरकार में रह जायेंगे. चंपाई झामुमो के पुराने कद्दावर नेता हैं. ऐसी स्थिति वह कितने दिनों तक बर्दाश्त कर पायेंगे यह तो आनेवाला वक्त ही बतायेगा.
पर यदि उन्हें यह स्थिति गवारा नहीं होती है तो एक बार फिर से संकट के बादल छा सकते हैं. ऐसे में एक बार परिवार के अंदर ही सत्ता के लिए घमासान दिख सकता है.
झामुमो की आस
पार्टी, परिवार और सरकार में चल रही गतिविधियों से दिशोम गुरु शिबू सोरेन वाकिफ हैं. पर उम्र उनके आड़े आ रही है. लेकिन जब चक्रव्यूह का सातवां चक्र सामने आ जायेगा और जीवन मरन का प्रश्न आयेगा तो ऐसी उम्मीद है कि गुरुजी सामने आयेंगे और पार्टी, परिवार और सरकार को बचाने का प्रयास करेंगे.